ए. सूर्यप्रकाश। चुनाव प्रचार अभियान के दौरान घोषणा पत्रों को लेकर भी वाद-विवाद का सिलसिला कायम है। चुनावी वादों को लेकर राजनीतिक दल एक-दूसरे को घेरने में लगे हुए हैं। इनमें विपक्षी दलों के मोर्चे आइएनडीआइए के घटक दल भी हैं, जैसे कि माकपा और कांग्रेस। लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र को ‘न्याय पत्र’ नाम दिया है और अपने चुनाव चिह्न ‘हाथ’ को हालात सुधारने से जोड़ते हुए ‘हाथ बदलेगा हालात’ का नारा दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पार्टी सकारात्मक दिशा में ही देश के हालात बदलेगी?

इस प्रश्न की पड़ताल के लिए कांग्रेस का चुनावी घोषणा पत्र बहुत उम्मीदें नहीं जगाता। इसमें अल्पसंख्यक तुष्टीकरण को लेकर किए गए वादों का सामाजिक सौहार्द और भारत की एकता-अखंडता पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। संविधान के अनुच्छेद-15, 16, 25, 28, 29 और 30 के तहत सभी नागरिकों को अपेक्षित रूप से वे सभी मूल अधिकार प्राप्त हैं, जिनका कांग्रेस अपनी सुविधा से जिक्र कर रही है। इसके बावजूद कांग्रेस मजहबी आस्था और भाषाई आधार आदि पहलुओं के आधार पर विभाजन की बुनियाद रखने पर आमादा है।

कांग्रेस ने ‘सार्वजनिक और निजी रोजगार एवं शिक्षा में विविधता के आकलन, निगरानी तथा प्रोत्साहन के लिए’ विविधता आयोग बनाने का वादा किया है। कांग्रेस का कहना है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, सरकारी नौकरियों, खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों में अल्पसंख्यकों की उचित भागीदारी होनी चाहिए। इसका यही संकेत है कि पार्टी विवादित सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को लागू कर निजी क्षेत्र को मजहबी कोटे से भर्तियों के लिए मजबूर करेगी।

वह शायद भारतीय क्रिकेट टीम और ओलिंपिक दल में भी अल्पसंख्यकों के लिए कोटे की मांग करे। सच्चर कमेटी ने भारतीय रिजर्व बैंक से यह जानकारी उपलब्ध कराने को कहा था कि वह मुस्लिम इलाकों में बांटे गए ऋण का ब्योरा उपलब्ध कराए। क्या कांग्रेस बैंकों से अल्पसंख्यकों के लिए संस्थागत ऋण मुहैया कराने के लिए भी कहेगी?

कांग्रेस के कार्यकाल में गठित हुई सच्चर कमेटी ने जब 2006 में अपना प्रतिवदेन प्रस्तुत किया तो उसमें सैन्य बलों में मजहबी आधार पर गणना करने का सुझाव भी दिया था। तब उस पर बहुत विवाद हुआ था। स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा देखने को मिला कि सैन्य बलों में भी धार्मिक-मजहबी आधार पर विभाजन का प्रयास किया गया।

हालांकि इस बार कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र में इसका कोई स्पष्ट उल्लेख तो नहीं, लेकिन सरकारी नौकरियों में मजहबी अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण का संकेत जरूर है, जो अपने व्यापक स्वरूप में सुरक्षा बलों को भी अपने दायरे में ले सकता है। यह देश की एकता-अखंडता को प्रभावित करने वाला विचार है। प्रतीत होता है कि कांग्रेस ने ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ का सिद्धांत अपनाकर विभाजन को बढ़ावा देने का मन बना लिया है।

कांग्रेस ने कहा है कि वह पर्सनल ला में सुधार को प्रोत्साहन देगी, लेकिन उसने यह भी साफ किया है कि ऐसे कोई भी सुधार संबंधित समुदाय की सहमति के बाद ही होने चाहिए। यह हास्यास्पद ही है, क्योंकि मुस्लिम समुदाय हमेशा से अपने पर्सनल कानूनों में सुधारों का विरोधी रहा है और शाहबानो मामले के समय से कांग्रेस आम मुस्लिम समुदाय के हितों की चिंता करने के नाम पर उनके कट्टरपंथी नेताओं के आगे नतमस्तक होती रही है।

अल्पसंख्यकों और सामाजिक मुद्दों के विषय पर भी कांग्रेस का घोषणा पत्र गैर-जिम्मेदार होने के साथ ही दोहरा रवैया प्रदर्शित करने वाला है। कांग्रेस का दावा है कि सत्ता में आने पर वह विवाह, उत्तराधिकार, विरासत, संतान गोद लेना और अभिभावक-संरक्षण जैसे पहलुओं पर महिलाओं और पुरुषों के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करेगी। जबकि वह समान नागरिक संहिता का निरंतर विरोध करती आई है।

समान नागरिक संहिता का उद्देश्य ही सभी समुदायों में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को दूर करना है। ऐसे में, उसके इस वादे में भी खोट नजर आती है, क्योंकि मुस्लिम समाज में शरीयत कानूनों के चलते ऐसे मामलों में विषमता कायम है। ऐसा लगता है कि घोषणा पत्र तैयार करने वालों ने बड़ी चतुराई दिखाई है, क्योंकि उसमें तलाक पर कोई चर्चा नहीं, जिसका मुस्लिम महिलाएं सर्वाधिक दंश भुगतती रही हैं।

अपने चुनावी घोषणा पत्र में कांग्रेस ने कुछ गारंटियां देने की बात की है, लेकिन ध्यान से देखा जाए तो संविधान ने ऐसी गारंटियां पहले से ही प्रदान की हुई हैं। पार्टी ने ‘विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बहाली’ का वादा किया है, जबकि संविधान के अनुच्छेद-19 में यह मूल अधिकार सभी नागरिकों को प्राप्त है। इसी के आधार पर कांग्रेस पार्टी के नेताओं सहित अन्य तमाम लोग इंटरनेट मीडिया पर प्रधानमंत्री मोदी समेत अन्य भाजपा नेताओं के खिलाफ आए दिन अपशब्दों का इस्तेमाल करते रहते हैं।

इस आजादी का इस कदर इस्तेमाल किया जा रहा है कि आइएनडीआइए के कुछ नेता प्रधानमंत्री मोदी को शारीरिक रूप से क्षति पहुंचाने तक का सार्वजनिक आह्वान करने से भी नहीं हिचकते। ऐसे में कांग्रेस कौनसी आजादी बहाल करेगी? इसके बजाय कांग्रेस को अपने और सहयोगी दलों द्वारा शासित राज्यों में लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों को बहाल करने का वादा करना चाहिए, जहां मुख्यमंत्री की आलोचना पर नागरिकों को पीटा और गिरफ्तार किया जाता है।

इसी प्रकार, कांग्रेस ने ‘लोगों के शांतिपूर्वक प्रदर्शन और संघ-समूह गठित करने के अधिकार को कायम रखने’ का भी वादा किया है।

संविधान के अनुच्छेद-19(क)(ख) और 19(1)(ग) पर दृष्टिपात करें तो 1950 में संविधान लागू होने के बाद से ही ऐसे अधिकार नागरिकों को निर्बाध रूप से प्राप्त रहे हैं और केवल 1975-77 की अवधि के दौरान निलंबित रहे, जब कांग्रेस शासन के दौरान देश में लागू आपातकाल के दौरान तानाशाही चल रही थी। फिर कांग्रेस के ऐसे वादों में क्या विशेष है? ये सभी तो मूल अधिकारों में आते हैं। ऐसे में कांग्रेस को इन अधिकारों को ‘अक्षुण्ण’ रखने का वादा करने की कोई जरूरत ही नहीं, क्योंकि ये तो लोगों को पहले से ही मिले हुए हैं।

(लेखक लोकतांत्रिक विषयों के विशेषज्ञ एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं)